Thursday 8 September 2016

संचार का पाठ

एक भूत  अपनी प्रवृति अनुसार लोगों को संकट में लाने के लिए एक आसान सवाल पूछता।
भूत  : ठंड कब होती है?
पहला आदमी  : दिसम्बर - जनवरी में ।
भूत ने उसे मार दिया।
कुछ दिन बाद दूसरा आदमी मिला । भूत ने उससे भी वही प्रश्न दोहराया। उसने भी वही जवाब दिया कि ठंड दिसम्बर - जनवरी में होती है । भूत ने उसे भी मार दिया ।कुछ महिनों तक यही  प्रश्न, यही उत्तर और यही सज़ा किंतु हर बार नए व्यक्ति पर दोहराये गए ।
पर कहानी का अंत तो होता ही है।भूत को भी आखिर वो इंसान मिला जिसने सही जवाब (जो भूत को समझ में आया ) दिया।उसने कहा कि ठंड जब पड़ती है जब ठंडी हवा चलती है ।और भूत ने उसे जाने दिया।
अब विचार किया जाए कि दिसम्बर -जनवरी वाले जवाब में क्या गलती थी ? उत्तर तो वो भी सही था।
किंतु...... भूत..  को वो उत्तर सही नहीं  लगता ।क्योंकि उसे  वो समझ में ही नहीं आता । ऐसा इसलिए क्योंकि उसकी मौत मई के महिने में ठंड से हुई थी ।इस कारण ही वो मानता था कि ठंड सिर्फ दिसम्बर-जनवरी में ही नहीं होती बल्कि मई में भी होती है ।इसी का उत्तर वो जानना चाहता था ।जो उसे उस आदमी के उत्तर में मिला ।
इस कहानी से पता चलता है कि एक संचारक (sender) को  प्रापक (reciever) के ,यहाँ पर भूत ,के विश्वास और उसके मनोविज्ञान के अनुकूल ही अपना  संदेश  देना चाहिए।तभी हमारा संचार पूरी तरह सफल होगा।
यही और ऐसी  ही कुछ बातें अपनी संचार की कक्षा में मैंने समझी।यह कक्षा हमारे अध्यापक Mr. Sunny ने दी ।उन्होंने समझाया कि क्यों संचार करना हमारी ज़रूरत है और जब हम हमारी बात-चीत बंद होती है तो क्या परिणाम हो सकता है ।उन्होंने बताया कि संचार से ही मेल जोल बढ़ता है ।अपनी बात दूसरों तक पहुँचाने के कारण ही आज मनुष्य एक समाज में खुद को बुन पाया है ।उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी जी के उदाहरण से हमें बताया कि कैसे संचार को अधिक सफल बनाया जा सकता है ।उन्होंने समझाया कि मोदी जी कैसे अपने संदेश की भाषा को प्रापक  (reciever ) के अनुकूल बनाते हैं ।जब वो अमेरिका में भाषण देते हैं तो आधुनिकरण की बातें करते हैं ।वहीं जब भोले-भाले ग्रामीण जन मानस को सम्बोधित करते हैँ  तो कैसे उन की बोली में बोलकर उनके दिलों तक पहुँचते हैं । अपने प्रापक को समझना भी ज़रूरी है ।एक अच्छा संचारक वही है जो अपना संदेश सामने वाले को समझा सके ।किंतु कई बार संचार में अवरोध होते हैं - भौतिक कारण (शोर), भाषा संबंधी, मनोवैज्ञानिक( विश्वास) आदि।

सफल संचार के लिए न सिर्फ शाब्दिक अपितु अशाब्दिक संचार का भी महत्त्व है ।कई विद्वान तो सफल संचार का श्रेय 50 % तक अशाब्दिक संचार को ही देते हैं ।संचार प्रक्रिया में शामिल लोगों की संख्या के आधार पर  संचार मुख्यतः चार प्रकार का है - अंतः वैयक्तिक संचार (स्वयं से संचार ),अंतर वैयक्तिक संचार( दो लोगों के बीच संचार ),समूह संचार (समूह में या समूह से संचार ) और जन संचार (जनसमूह से संचार)।
अब हम जन समूह संचार (mass communications) को पढ़ेंगे । यह आज के प्रजातंत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण है ।इससे हम अपनी बात बड़े जनसमूह तक पहुँचा पाते हैं।किंतु बड़े समूह के साथ सावधानियाँ भी अधिक होती हैं ।जैसे सही माध्यम ,भाषा अपने उद्देश्य , अपने प्रापक के हिसाब से चुनना आदि ।
तो मैं कह सकती हूँ कि मैंने सीधी -सरल बातों से जटिल चीजों को सीखा ।कक्षा को जिंदगी में जोड़ना सीखा ।



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